छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT) 1908
*छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908* झारखंड राज्य के आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम *11 नवंबर 1908* को लागू किया गया था और इसे आदिवासी भूमि का “रक्षा कवच” माना जाता है[1][2]।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
*बिरसा आंदोलन का प्रभाव*
इस अधिनियम का निर्माण *बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए बिरसा आंदोलन* के परिणामस्वरूप हुआ था[3][4]। बिरसा मुंडा के “उलगुलान” आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला, जिसके कारण आदिवासी भूमि अधिकारों की लिए यह कानून बनाना पड़ा[5][3]।
*अधिनियम का निर्माण*
– *जॉन एच हॉफमैन* (John H. Hoffman) ने इस अधिनियम का प्रारूप तैयार किया था[2][6]
– यह *बंगाल अधिनियम संख्या 6, 1908* के रूप में पारित हुआ था[1][2]
– भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 की धारा-5 के अधीन गवर्नर जनरल की मंजूरी से अधिनियमित किया गया[1][7]
अधिनियम की संरचना
*अध्याय और धाराएं*
– *कुल अध्याय*: 19 अध्याय
– *कुल धाराएं*: 271 धाराएं
– *अनुसूचियां*: 2 अनुसूचियां
*प्रादेशिक विस्तार*
यह अधिनियम निम्नलिखित प्रमंडलों में लागू है[1][2]:
– *उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल*
– *दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल*
– *पलामू प्रमंडल*
– *कोल्हान प्रमंडल* (बाद में जोड़ा गया)
मुख्य प्रावधान
*धारा 46 – भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध*
यह सबसे महत्वपूर्ण धारा है जो *आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक* लगाती है[5][9]। इस धारा के अनुसार:
– आदिवासी अपनी भूमि केवल उसी पुलिस स्टेशन क्षेत्र के अन्य आदिवासी को बेच सकते हैं
– उपायुक्त की पूर्व अनुमति आवश्यक है[9][10]
*धारा 49 – विशेष परिस्थितियों में भूमि हस्तांतरण*
इस धारा के अनुसार आदिवासी भूमि का हस्तांतरण गैर-आदिवासियों को केवल *औद्योगिक या कृषि उद्देश्यों* के लिए ही किया जा सकता है[5][9]।
*धारा 21 – अधिभोगी रैयत के अधिकार*
यह धारा *भूमि के उपयोग के संबंध में अधिभोगी रैयत के अधिकारों* को परिभाषित करती है
*काश्तकारों के वर्ग* (धारा 4)
अधिनियम में काश्तकारों को निम्न वर्गों में बांटा गया है[1]:
1. *भूधारक* (Tenure-holders)
2. *रैयत* – जिसमें अधिभोगी रैयत, गैर-अधिभोगी रैयत, और खूंट-कट्टी अधिकार वाले रैयत शामिल हैं
3. *उप-रैयत* (Under-raiyats)
4. *मुंडारी खूंट-कट्टीदार*
संवैधानिक स्थिति
यह अधिनियम *भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची* में सूचीबद्ध है, जिससे यह *न्यायिक समीक्षा से परे* है[8][9][10]।
संशोधन और विकास
*संशोधनों की संख्या*
अब तक इस अधिनियम में *कुल 26 संशोधन* किए गए हैं[5][9]। पहला संशोधन *1920* में किया गया था[7]।
*महत्वपूर्ण संशोधन*
– *1947*: धारा 14 को धारा 46 से बदला गया[13]
– *1962*: अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को भी कवरेज मिला[5]
– *1969*: भूमि बहाली के लिए समय सीमा 12 वर्ष से बढ़ाकर 30 वर्ष की गई[5]
वर्तमान चुनौतियां
*भूमि हस्तांतरण के मामले*
2016 में झारखंड भर में लंबित *भूमि बहाली के मामलों की संख्या 20,000* थी[9][10]।
*औद्योगीकरण का प्रभाव*
स्वतंत्रता के बाद से झारखंड के लगभग *20 प्रतिशत क्षेत्र* को विकास कार्यों के लिए हस्तांतरित किया गया है, जिससे लगभग *40 लाख आदिवासियों का विस्थापन* हुआ है[14]।
SPT अधिनियम से तुलना
*संथाल परगना काश्तकारी (SPT) अधिनियम, 1949* के साथ तुलना:
– CNT Act *1908* में लागू हुआ, जबकि SPT Act *1949* में[15][16]
– CNT Act चार प्रमंडलों में लागू है, जबकि SPT Act केवल संथाल परगना में[16][17]
– दोनों का उद्देश्य आदिवासी भूमि की सुरक्षा है[16][17]
निष्कर्ष
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 झारखंड की आदिवासी जनसंख्या के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है। यह कानून आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा करता है और सामुदायिक स्वामित्व को बनाए रखता है। हालांकि इसमें समय-समय पर संशोधन हुए हैं, लेकिन इसका मूल उद्देश्य आदिवासी समुदाय की भूमि को बाहरी शोषण से बचाना ही रहा है। आज भी यह अधिनियम झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनकी पहचान तथा संस्कृति को संरक्षित करने में सहायक है